Wo Pal !!!!


कल रात नींद ही नहीं आई .. बहोत देर तक मूवी जो देख रहे थे, अब जब रात में नींद न हो तो ये तो लाज़मी है की आप सुबह देर से उठोगे और वही हुआ ...हम जनाब १२ बजे उठे ... इतना भी ध्यान नहीं की ऑफिस का वक़्त हो चला है. कोई नहीं ऑफिस नजदीक ही तो है बेपरवाह तैयार होने लगे तो कैब भी छोड़ दी सोचा आज ऑटो से ही चला जाए ... तय्यारी की, आज मै घर जो जाऊँगा तो बैग भी पैक कर ली, सब सही था. घर से बहार निकला दो कदम चला की बरसात की बुँदे टपकने लगी...
मौसम ने अचानक करवट बदली, आसमान में काले घने बदल मानो लढाई की तय्यारी में थे, नज़र ऊपर उठते ही बूंदों ने अपना घनघोर रूप धारण कर लिया था ...ऑटो तो मिलना मुश्किल पर किसी तरह बस स्टैंड की छत का सहारा मिल गया ... जनाब वहां आधा घंटा खड़ा रहा .. उस आधे घंटे में मैंने अपना बचपन जी लिया, जब वो चिटे बदन पर गिर रहे थे मानो ऐसे लगा की आज भाड़ में डालो ऑफिस यार आज मई खुद के लिए जी लूं, भीग जाऊ, पर अगर ऐसा कुछ करता तो वहां खड़े लोग मुजे पागल करार दे देते.
याद आगै वो दिन जब बारिश में भीगना एक मामूली सी बात थी, याद आगै वो दिन जब बरसता में थकने तक क्रिकेट खेलना, स्कूल से घर तक के रास्ते में मौजूद हर ditch में नाचना, सारे कपडे कीचड़ से भर देना और घर पहोच्तेही पापा मम्मी की घनघोर डांट का शिकार होना ... अब हम उन शैतानो में से थे जो डांट खा कर भी न सुधरे... दो पल गलती का अहेसास जताया फिर कपडे बदले और चले अपनी तितलिय पकड़ने ... बरसात के थमते ही तितलिय बाहर आ जाती है ...ये उनकी अदा हमने बचपन में ही जान ली थी ..कुछ पौधे जमाकर उनकी झाड़ू बनाना और हम तितलिय पकड़ने के लिए तैयार ... जब राजा, रानी,चोर, सिपाही, मंत्री और बाकि दरबार तितलिय पकड़ ली जाती तो हम और हमारे दोस्त उनके लिए महल बनाने में जूट जाते, ईट का महल हा हा ...फिर राजा रानी का सिंहासन बनाना और क्या क्या ...सारी मशक्कत करने में फिर सारे कपडे ख़राब होना और फिर वही डाट ...जब अब डांट पड़नी ही है तो क्यों न थोड़ी देर और मजा लिया जाए ..पुराणी कॉपी के पन्ने फाड़ना   और उनकी नाव बनाकर नालों में छोड़ना और दूर तक उनका पिचा करना, दोस्तों से  शर्त लगाना, बंटे, सुर्काड़ी, सब्बल, क्रिकेट, फूटबाल ....हम्म्म्म ...
उस आधे घंटे में मैंने नजाने क्या क्या सोच लिया और हस पड़ा ... जब हसी छुटी तो ध्यान आया की कुछ लोग मुजे अजब निगाहों से देख रहे है .. मै लौट आया अपनी अस्तित्व की दुनिया में, जहाँ मै चाहकर भी वो सब नहीं कर पाऊँगा ... क्यों ? .. ह्म्म्म मै दुनिया की नज़रो में बड़ा हो चूका हूँ और उनके हिसाब से अब मुजे बढ़ो जैसा बीहेव करना चाहिए. मुजे वो सब छोड़ना होगा जो मुजे ख़ुशी देती है ... सब बढे ये कर चुके है, अपने भीतर के उस बचपन को कब्र में दफना चुके है, और अब मैं भी उस लकीर का फकीर हूँ !!!!

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